
व्हाइट हाउस में पहले 100 दिनों में ट्रंप की 5 विवादास्पद घटनाएं
जैसे ही डोनाल्ड जे. ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक बार फिर कदम रखा, दुनिया ने एक बार फिर एक ऐसी राष्ट्रपति की वापसी देखी, जिसकी राजनीति अक्सर नियमों से अलग होती है और सुर्खियों में रहती है। अब जब उनके दूसरे कार्यकाल के पहले 100 दिन पूरे हो चुके हैं, तब अमेरिकी राजनीति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीति का परिदृश्य लगातार हिलता रहा है।
चाहे आप उनके समर्थक हों या विरोधी, यह कहना गलत नहीं होगा कि ट्रंप विवादों को पैदा करने और उनमें टिके रहने में माहिर हैं। विदेश नीति से लेकर प्रशासनिक फैसलों तक, हर कदम ने बहस को जन्म दिया है।
यहां हम ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के शुरुआती दिनों में हुई पांच सबसे विवादास्पद घटनाओं पर नज़र डालते हैं, जिन्होंने पूरे अमेरिका और दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा।
1. सीमा सुरक्षा पर कार्यकारी आदेश: दीवार की वापसी
दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही ट्रंप ने अमेरिकी-मेक्सिको सीमा पर दीवार के निर्माण को फिर से शुरू करने का आदेश जारी किया। यह दीवार उनके पहले कार्यकाल का प्रतीक बन गई थी, लेकिन इस बार इसके साथ निजी ज़मीनों को जब्त करने, कड़े प्रवासन कानून और निगरानी तकनीक के उपयोग जैसे बिंदु भी जोड़े गए।
इस आदेश के खिलाफ नागरिक अधिकार संगठनों, सीमा-राज्यों के गवर्नरों और यहां तक कि ट्रंप की पार्टी के कुछ नेताओं ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी। विभिन्न राज्यों में कानूनी चुनौतियां खड़ी हो गईं। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर घोषणा की: "दीवार वापस आ गई है – बड़ी, मजबूत और स्मार्ट!"
इस बयान ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया और यह संकेत दे दिया कि ट्रंप का दूसरा कार्यकाल भी टकरावों से भरा होगा।
2. व्यापार शुल्कों की घोषणा: चीन के साथ नया संघर्ष
अपने कार्यकाल के पहले 30 दिनों के भीतर ही ट्रंप प्रशासन ने चीन से आयातित अर्धचालक (semiconductor), दुर्लभ धातुओं और इलेक्ट्रिक वाहनों पर भारी शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। इसके जवाब में चीन ने अमेरिका से आने वाले कई उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिए।
इस फैसले के कारण विश्व बाजारों में अस्थिरता फैल गई, और अमेरिकी शेयर बाज़ार में भारी गिरावट देखने को मिली। आलोचकों ने इसे एक नई वैश्विक व्यापार युद्ध की शुरुआत बताया, जबकि ट्रंप ने कहा, "अब अमेरिका का फायदा कोई नहीं उठा सकेगा।"
समर्थकों ने इसे राष्ट्रवादी नीति का हिस्सा बताया, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसका विरोध हुआ। ट्रंप की इस नीति ने फिर से यह दिखा दिया कि वे अकेले खड़े होकर भी फैसले लेने से नहीं डरते।
3. नाटो से टकराव: “या तो खर्च बढ़ाओ या छोड़ो”
ब्रसेल्स में नाटो नेताओं के साथ एक बैठक के दौरान ट्रंप ने चौंकाने वाला बयान दिया कि अगर सदस्य देश अपने रक्षा खर्च को नहीं बढ़ाते हैं, तो अमेरिका संगठन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर पुनर्विचार करेगा।
यह बयान यूरोपीय देशों के लिए एक झटका था। जर्मन चांसलर ने इसे "खतरनाक और गैर-जिम्मेदार" बताया, और फ्रांस ने तुरंत एक सुरक्षा बैठक बुलाई। हालांकि अमेरिका में कुछ वर्गों ने ट्रंप के बयान का समर्थन किया, लेकिन कूटनीतिक रूप से इसे अमेरिका की पारंपरिक भूमिका से अलग माना गया।
इस घटना ने अमेरिका की विदेश नीति की दिशा को हिला दिया और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों में दरार पैदा कर दी।
4. सोशल मीडिया और न्याय विभाग का संघर्ष
ट्रंप ने सोशल मीडिया कंपनियों के खिलाफ अपने रुख को और तेज करते हुए न्याय विभाग से इन प्लेटफार्मों की जांच के लिए शक्तियों का विस्तार मांगा। उन्होंने “बिग टेक” पर आरोप लगाया कि वे रूढ़िवादी आवाज़ों को दबा रहे हैं और वादा किया कि वह इन तकनीकी कंपनियों के एकाधिकार को खत्म करेंगे।
बड़ी टेक कंपनियों के सीईओ को कांग्रेस के सामने पेश होने के लिए बुलाया गया, और इस कदम की मानवाधिकार संगठनों ने कड़ी आलोचना की। आलोचकों ने इसे “डिजिटल तानाशाही” कहा।
हालांकि समर्थकों का मानना था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को सीमाओं में रहना चाहिए, यह घटना स्वतंत्र अभिव्यक्ति बनाम सरकारी नियंत्रण की बहस को नई ऊंचाइयों पर ले गई।
5. “अमेरिका फर्स्ट” ऊर्जा नीति: पर्यावरण बनाम अर्थव्यवस्था
ट्रंप ने "अमेरिका फर्स्ट एनर्जी एक्ट" पर हस्ताक्षर करते हुए कई जलवायु संरक्षण नीतियों को खत्म कर दिया। इस कानून के तहत समुद्री ड्रिलिंग की अनुमति, प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों का विस्तार और अंतरराष्ट्रीय जलवायु समझौतों से हटना शामिल था।
जहां ऊर्जा कंपनियों और नौकरियों के समर्थकों ने इस कदम का स्वागत किया, वहीं पर्यावरण संगठनों ने इसका विरोध किया। देशभर में जलवायु विरोध रैलियां शुरू हुईं, और कई मशहूर हस्तियों और छात्रों ने इस कानून के खिलाफ आवाज़ उठाई।
अलास्का और डकोटा की स्वदेशी जनजातियों ने पवित्र भूमि पर ड्रिलिंग रोकने के लिए अदालतों में केस दायर कर दिए।
निष्कर्ष: एक विभाजनकारी लेकिन प्रभावशाली वापसी
ट्रंप के पहले 100 दिन किसी राजनीतिक भूकंप से कम नहीं रहे। समर्थकों के लिए वे राष्ट्रवाद, शक्ति और साहस की वापसी लेकर आए, तो आलोचकों के लिए ये दिन लोकतंत्र, कूटनीति और स्वतंत्रता के लिए खतरा बनकर उभरे।
चाहे इतिहास इन कदमों को साहसी कहे या खतरनाक, इस बात में कोई शक नहीं कि ट्रंप की वापसी ने 2025 के राजनीतिक माहौल को पूरी तरह बदल दिया है।
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